सूरज फिर भी निकलता है
कितने भी काले बादल हों,
सूरज फिर भी निकलता है,
अपनी वो, दीप्ति रश्मि से,
यह पुरा जग रोशन करता है।
मगर, जब संध्या आती है,
अंधेरा छाने लगता है,
सूरज की अमर रश्मि,
जब अंधेरा में छिप जाती है।
अगला दिन फिर आता है ,
जब सूरज फिर निकलता है,
अपनी वो अमर रश्मि से,
यह पूरा जग रश्मिमय करता है।
हर दिन उजाला होता है,
हर रात अंधेरा होता है,
अंधेरा, उजाला छिपाता है,
उजाला, अंधेरा भगाता है।
अंतर बस इतना होता है,
सबका वक्त आता है,
कभी अंधेरा छाता है,
कभी उजाला आता है।
सूरज की अमृतमय किरणों से,
जग का संचालन होता है,
मगर अंधेरा जब छाता है ,
सब कुछ रुक जाता है,
सब कुछ छिप जाता है।
कितना भी घना कोहरा हो,
सूरज फिर भी निकलता है,
अपनी वो सुधामयी किरणों से,
सम्पूर्ण विश्व किरणमयी कराता है।
फिर जग को संचालित करता है ,
मौसम कुछ भी होता है,
सूरज फिर भी निकलता है,
सूरज फिर भी निकलता है।।
ईफा एग्नेस