'अफसोस', कश्मीर का
जहाँ 10 में से 4 हैं,
गरीबी के शिकार;
जहाँ है बेरोजगारी,
विकार कि बाढ़;
जहाँ धन निर्भित है,
न्याय- अन्याय;
जहाँ नहीं कर पाते हैं,
सभी शिक्षा जलपान;
जहाँ नीचे से ऊपर तक
भ्रष्टाचार महान;
जहाँ जवाबदेह नहीं,
कोई किसी जाने की;
जहाँ बम- गोली ले लेती
बिना बताए प्राण;
जहाँ पता नहीं लोगों को,
सुबह निकलने पर,
शाम पहुँचने का;
जहाँ की सरकार को,
चिन्ता नहीं अपने आम लोगों की,
ना ही, दिखती तकलीफें उनकी
ना ही, जरूरतें।।
वहाँ अफसोस है
कश्मीर का, कश्मीर का
खुद लगाकर आग स्वयं,
करते है अफसोस
कश्मीर का, कश्मीर का।।
शिवान्गी सौम्या सुहानी